________________ विषयोर्मिविषोद्गारः, स्यादतृप्तस्य पुद्गलैः / ज्ञानतृप्तस्य तु ध्यानसुधोद्गारपरम्परा // 7 // अतृप्त है जो पुद्गलों से विषय विष उद्गार है। जो तृप्त होते ज्ञान अमृत ध्यान का ही डकार है। अन्तर बडा है विष सुधा का छोड़ पुद्गल संग अब / निज ज्ञान मस्ती में रहो हो प्राप्त तृप्ति परम तब // 7 // पुद्गलों के परिभोग से अतृप्त ऐसे (मनुष्यों को) विषय के तरंग रूप जहर का उद्गार (डकार) प्रकट होता है। ज्ञान से तृप्त साधकों को तो ध्यान रूप अमृत के उद्गार (डकार) की परम्परा होती हैं। Those who are satiated by the material aspect of life spit only the venom of physical desires but the all knowing sadhus who survive on the nectar of knowledge incessantly exude the nectar of meditation. (791