________________ सुखिनो विषयातृप्ता, नेन्द्रोपेन्द्रादयोऽप्यहो। भिक्षुरेकः सुखी लोके, ज्ञानतृप्तो निरंजनः // 8 // इन्द्रादि भी न सुखी रहे जो विषय रस में डूबते। इन्द्रिय विषय रस भोगते अतृप्ति में सब झुंचते॥ जो ज्ञान से परितृप्त है अंजन रहित मल रहित है। इस लोक में बस वे ही भिक्षु तृप्त है सुख सहित है // 8 // .. विषयों से अतृप्त इन्द्र उपेन्द्र आदि भी सुखी नहीं हैं यह आश्चर्य है। जगत में ज्ञान से तृप्त कर्ममल रहित ऐसा एक साधु ही सुखी The king of gods, Indra, etc, who are seeped in the physical luxuries, tog, cannot experience the bliss which a common sadhu seeped in knowledge can do so easily. {80)