________________ लिप्तता ज्ञानसम्पातप्रतिघाताय केवलम्। निर्लेपज्ञानमग्नस्य, क्रिया सर्वोपयुज्यते // 4 // हो भान ऐसा आतमा निर्लिप्त रहता है सदा। उसी क्रिया उपयोग सम परिणाम रहता सर्वदा॥ ना लिप्तता का ज्ञान आवे रोकती उसको क्रिया। शुभ ध्यान योगी साधु का निर्लिप्त रहता है जिया॥४॥ “आत्मा निर्लेप है" ऐसे निर्लेप ज्ञान में मग्न आत्मा को सभी आवश्यक आदि क्रियाएँ केवल “आत्मा कर्मबद्ध है" ऐसे लिप्तता के ज्ञान के आगमन को रोकने के लिये उपयोगी बनती है। The utility of the ascetic practices lies in countering the knowledge that as a living being the soul is tethered with karma, and so tarnished. So that the Yogi may transcend into the state of being untouched or.of pure meditation. {4}