________________ निर्लेप-11 संसारे निवसन् स्वार्थसज्जः कज्ज्लवेश्मनि / लिप्यते निखिलो लोको, ज्ञानसिद्धो न लिप्यते // 1 // कज्जल गृहादि स्वरूप जग में स्वार्थ से सब लिप्त हैं। कभी राग में कभी द्वेष में कभी काम में उद्दीप्त हैं। पर ज्ञान सिद्ध मुनीश तो नहिं लिप्त होता है कभी। संसार में रहते हुए निर्लिप्त रहते मुनि सभी॥१॥ काजल के घर समान संसार में रहता हुआ स्वार्थ से युक्त सारा लोक कर्म से लिप्त होता है जबकि ज्ञान से परिपूर्ण जीव (ऐसे संसार में रहता हुआ भी) लिप्त नहीं होता। UNTARNISHED In this world which is like a house of kohl (kajal), everyone remains enmeshed in the koh! of selfishness. Only those with true knowledge manage to remain untouched. {81}