________________ गुणवद्बहुमानादे-नित्यस्मृत्या च सत्क्रिया। जातं न पातयेद्भावमजातं जनयेदपि // 5 // गुण गुणी का सम्मान, स्वीकृत नियम नित्य स्मरण करें। ऐसी क्रिया शुभकारिणी सहकारिणी शिव पद वरें। शुभ भाव जगते पूर्व आगत भाव शुभ सुस्थिर करे। संबोधि दायक त्राणदायक क्रिया अघ दल मल हरे // 5 // गुणवंत के बहुमान आदि से तथा स्वीकृत नियमों के नित्य स्मरण से शुभ क्रिया उत्पन्न भावों की रक्षा करती है अर्थात् गिरने नहीं देती और अनुत्पन्न भावों को भी प्रकट करती है। Paying due respect to accomplished persons and regular recounting of the accepted codes of conduct are practices that promote pious feelings and take one to an exalted state of existence. {69)