________________ स्वानुकूलां क्रियां काले, ज्ञानपूर्णोऽप्यपेक्षते। प्रदीप: स्वप्रकाशोऽपि, तैलपूर्त्यादिकं यथा // 3 // संपूर्ण ज्ञानी भी करे वर योग्य किरिया निर्मली। अनुकूल हो निज भाव में तो क्रिया करते केवली॥ दीपक स्वयं होता उजाला तेल फिर भी चाहिये। ज्यों तेल उसको त्यों क्रिया अनुकूल चित्त लगाइये // 3 // जिस प्रकार दीपक स्वयं प्रकाश रूप है फिर भी तेल पूरने आदि की क्रियाएँ अपेक्षित रहती हैं उसी प्रकार पूर्ण ज्ञानी भी समयानुसार स्वभाव रूप कार्य के अनुकूल क्रियाओं की अपेक्षा रखता है। A lamp emanates light and yet its light is dependent on the proportion of oil that is put in it. Likewise even a knowledgeable 'yogi' or knower has to indulge in practices suited to his level of purity. (67}