________________ क्रिया-9| ज्ञानी क्रियापरः शान्तो, भावितात्मा जितेन्दियः / स्वयं तीणों भवाम्भोधेः, परांस्तारयितुं क्षमः // 1 // सद्ज्ञान युत उपशान्त है रुचि है क्रिया में सरल है। जित इन्द्रियाँ है भावितात्मा साधु निर्मल विमल है। गुणयुक्त ऐसा साधु तिरता और सबको तारता। . शुभज्ञान युत किरिया समक्षे मोह राजा हारता // 1 // सभ्यग् ज्ञानी, क्रिया में तत्पर, शान्त, भावित और इन्द्रिय विजेता ऐसी आत्मा स्वयं संसार रूपी समुद्र से तिरी हुई है और अन्यों को भी तारने में समर्थ है। PRACTICE With a sincere interest in practices, endowed with right knowledge and peace, in control of his sense organs, such a sadhu overcomes attachment and acquires liberation for himself and others as well. {65)