________________ ज्ञानाऽचारादयोऽपीष्टाः, शुद्धस्वस्वपदावधि। निर्विकल्पे पुनस्त्यागे, न विकल्पो न वा क्रिया॥६॥ निज शुद्ध पद सीमा तलक ही मान्य ज्ञानाचार है। जब प्राप्त उत्तम निर्विकल्प दशा न कोई विचार है। ऐसी परम उत्कृष्ट भावोल्लास जागृति- हो गई। न विकल्प है ऐसी दशा में सफल किरिया खो गई॥६॥ ज्ञानाचार आदि आचारों का पालन भी अपने उस उस शुद्ध पद की प्राप्ति तक ही इष्ट है निर्विकल्प समाधि रूप त्याग की अवस्था में कोई विकल्प भी नहीं है और कोई क्रिया भी नहीं है। There are certain limitations to the optimal utility of knowledge for once a state of unambiguity is reached an inexplicable feeling of exaltation pervades the being. In that state there are neither any alternatives nor any outward activity. (62}