________________ गुरुत्वं स्वस्य नोदेति, शिक्षासात्म्येन यावता। आत्मतत्त्वप्रकाशेन, तावत् सेव्यो गुरूत्तमः // 5 // जब तक निजातम रमणता रूपी गुरूत्व न पा सको। गुरूवर समीपे प्राप्त कर शिक्षा स्वबोध न पा सको। तब तक रहो तुम सर्वदा गुरू सन्निधि स्वीकार कर। निश्रा गुरू की बोध देती दिशा देती तिमिर हर // 5 // .. जब तक शिक्षा के सम्यक् परिणाम से आत्म स्वरूप के बोध द्वारा स्वयं का गुरुत्व प्रकट नहीं होता तब तक उत्तम गुरु का सेवन करना चाहिये। Till self realization is not achieved, it is best to be in the company and guidance of one's guru. The accomplished guru guides along the right path leading one from darkness to light. {61}