________________ अनारोपसुखं मोह-त्यागादनुभवन्नपि। आरोपप्रियलोकेषु, वक्तुमाश्चर्यवान् भवेत् // 7 // निज भान ज्ञान स्वबोध का अनुभव जिन्होंने कर लिया। उस भान को समझाऊं कैसे सोचता उनका हिया॥ कल्पित सुखों को सुख माने मूढ़ नर, आश्चर्य है ! निज सहज सुख तज कल्पना में क्या मिले माधुर्य है // 7 // मोह के त्याग से आरोप रहित स्वभाव के सुख का योगी अनुभव करता हुआ भी, झूठा जिन्हें प्रिय है ऐसे लोगों के सामने अपना सुखानुभव कहता हुआ आश्चर्य वाला बनता है। Those who have experienced the essence of the 'self wonder how they may possibly express this realization. They wonder how, ignorant from the bliss of this realization, the foolish run after the mirage of mundane happiness. {31}