________________ निर्वाणपदमप्येकं, भाव्यते यन्मुहुर्मुहुः। तदेव ज्ञानमुत्कृष्टं, निर्बन्धो नास्ति भूयसा॥२॥ बस मोक्ष पद अभिलाष की इक भावना प्रतिपल रहे। नहिं और कुछ चाहूं हृदय में भाव मुक्ति के बहे // यह ज्ञान ही उत्कृष्ट है जो चित्त ने धारा अगर / ज्यादा भले न पढ़ा हो फिर भी है वही ज्ञानी प्रवर // 2 // एक मात्र मोक्ष साधक पद वारम्वार आत्मा द्वारा भावित होता है अर्थात् बार-बार चिन्तन किया जाता है वही ज्ञान परिपूर्ण है। ज्यादा ज्ञान का आग्रह नहीं है। Even one who lacks formal education is a true knower if his heart sincerely desires liberation and true knowledge. He needs no more. {34}