________________ ज्ञान-5 मज्जत्यज्ञः किलाऽज्ञाने, विष्ठायामिव शूकरः। ज्ञानी निमज्जति ज्ञाने, मराल इव मानसे // 1 // शूकर बने ज्यों मगन विष्ठा में बने नर अज्ञ त्यों। अज्ञान में ही राचता हो मगन श्रुत में सुज्ञ ज्यों। वर हंस सरवर मान में ही बन मगर सुख को लहे। निज पर विवेकी तत्त्व ज्ञानी ज्ञान गंगा में बहे // 1 // जिस प्रकार शूकर विष्ठा में मग्न होता है वैसे ही अज्ञानी अज्ञान में ही मग्न हो जाता है। जिस प्रकार हंस मान सरोवर में निमग्न होता है, उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष ज्ञान में ही निमग्न होते हैं। KNOWLEDGE Like a swine is attracted to his own spoils, an ignorant person remains attached to his ignorance, while those attached to the knowledge of the 'Shrutas' remain entranced like the swans of 'Mansarover' (the Lake in Paradise). {33}