________________ यश्चिद्दर्पणविन्यस्त'- समस्ताऽऽचारचारुधीः / क्व नाम स परद्रव्ये-ऽनुपयोगिनि मुह्यति ? // 8 // निज ज्ञान रूपी कांच में स्थापित किये आचार है। ऐसा मतीश्वर जानता पुद्गल सकल सविकार है। पर द्रव्य उपभोगी नहीं पहिचान होता मूढ़ ना। यह मोह माया सकल है सम जान राक्षसी पूतना // 8 // ज्ञान रूपी दर्पण में स्थापित समस्त ज्ञानादि पाँच आचारों द्वारा जो सुन्दर बुद्धि वाला है, ऐसा योगी अनुपयोगी पर - द्रव्यों में आसक्त क्यों होगा। One who has recognized and indentified his true 'self in the mirror of knowledge acquired through the five rules of good conduct and righteounsess, is aware of the maligned nature of everything material. Such a yogi will never have fondness for the material world. 132}