________________ पतङ्ग--भृङ्ग-मीनेभसारङ्गायान्ति दुर्दशाम्। एकैकेन्द्रियदोषाच्चेद, दुष्टैस्तैः किं न पञ्चभिः // 7 // इन्द्रिय विलासी एक के होती दशा कितनी बुरी। जो पांच में ही फँस गया कैसी.बने उसकी धुरी॥ गज हिरण मत्स पतंग शृंगादि ये इन्दिय वश मरे। हे जीव ! तेरी क्या दशा हो सोच अब जग जा अरे // 7 // पतंगिया, भ्रमर, मत्स्य, हाथी और हिरण ये एक-एक इन्द्रिय में आसक्त होकर जब दुर्दशा को प्राप्त करते हैं तो दुष्ट पांचों इन्द्रियों द्वारा क्या नहीं हो सकता। The plight of one who is a slave of his senses is always pitiable. Opressed by those five senses how can he save himself when elephant, deer, fish, birds and insects overpowered by just one sense lose their lives. Man, at least this realization should caution you. {55)