________________ शमसूक्तसुधासिक्तं, येषां नक्तंदिनं मनः / कदापि ते न दह्यन्ते, रागोरगविषोर्मिभिः / 7 // जिसका हृदय सम रूप अमृत से सदा सिंचित रहे। हर समय मन में शान्ति समता का सुधारस ही बहे // वह राग रूपी नाग विष की उर्मियों से ना जले। मुनिराज के मन रूप सर में शान्ति कमल सदा खिले॥७॥ जिनका मन रात और दिन सम के सुभाषित अमृत द्वारा सिंचित है, वे कभी भी राग रूप सर्प के जहर की उर्मियों द्वारा नहीं जलते A heart which is forever inundated with the elixir of equanimity is always at peace. Such a heart . never burns with the spurts of fire of the venom of the snake of anger. Such a heart always has the lotus of peace blossoming in it. . {47}