________________ ज्ञानध्यानतपःशील - सम्यक्त्वसहितोऽप्यहो। तं नाप्नोति गुणं साधुर्यं प्राप्नोति शमाऽन्वितः // 5 // सम्यक्त्व युत कितना भी तप जप ज्ञान ध्यान करे मुनि। यदि शम नहीं तो कुछ नहीं करता भले मुनि पुनि पुनि // शम ही गुणों का सार है, सरदार है, आधार है। शम युत मुनीश्वर ही लहे निज भान ज्ञान-विचार है / / 5 / / सम युक्त साधु जिस गुण को प्राप्त करता है। अहो! ज्ञान-ध्यान-तप-शील और सम्यक्त्व सहित साधु भी उस गुण को प्राप्त नहीं कर सकता। No matter how hard a Muni tries and:with as much equilibrium, still everything comes to naught unless he achieves equanimity through right knowledge and realization of the self. - - {45}.