________________ अस्ति चेद् ग्रन्थिभिद् ज्ञानं, किं चित्रैस्तन्त्रयन्त्रणैः। प्रदीपा: क्वोपयुज्यन्ते, तमोनी दृष्टिरेव चेत्? // 6 // जब ज्ञान से ही ग्रन्थि मिटती राग द्वेष मिटे सकल। फिर शास्त्र बंधन की जरूरत है नहीं मुझको प्रबल॥ तम नाश चक्षु से ही हो कर क्या सके दीपक वहाँ। हे भव्य जीवों ! ज्ञान धारो शिव वहाँ श्रुत है जहाँ // 6 // ग्रन्थि भेद से जिसे ज्ञान हो गया है, उसको अनेक प्रकार के शास्त्रों का बंधन किस काम का है ? जब आँख ही अंधकार को नाश कर देती है, वहां दीपकों का क्या उपयोग है ? O' you, the elevated beings! know that through right knowledge all the mysteries are unfolded and answers acquired. Then the reliance on the scriptures is as unnecessary as the lamp is when the inner light is there to dispel the darkness.. {38}