________________ वादांश्च प्रतिवादांश्च, . वदन्तोऽनिश्चितांस्तथा। तत्त्वान्त नैव गच्छन्ति, तिलपीलकवद् गतौ॥४॥ अल्पज्ञ पंडित वादचर्चा में अनिश्चित ही. रहे। वे पूर्व उत्तर पक्ष में दिन रात फँसते ही रहे। ज्यों बैल घाणी का जगह इक में ही दिन भर घूमता। त्यों तत्त्व परिणति प्राप्त ना सद् ज्ञान बिन नर घूमता // 4 // अनिश्चित अर्थ वाले वाद और प्रतिवाद करने वाले जीव आगे बढ़ने में घाणी के बैल की तरह तत्व निर्णय को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। Pundits with little knowledge get embroiled in futile discussions and dogmas. Lacking in true knowledge they go round and round just like the yoked bull in an oil mill. {36}