________________ यस्य दृष्टिः कृपावृष्टि-गिरः शमसुधाकिरः। तस्मै नमः शुभंज्ञान-ध्यानमग्नाय योगिने // 8 // दृष्टि जिन्हों की करे करुणा वृष्टि शांति अपार है। वाणी करे छिड़काव अमृत धैर्य पारावार है। शुभ ज्ञान में जो मग्न है उन योगियों को वंदना। नित भावभीनी वंदना से हुवे कर्म निकंदना // 8 // जिनकी दृष्टि करुणा की वृष्टि करती है। जिनकी वाणी उपशम रूप अमृत का छिड़काव करती है। उन सम्यक् ज्ञान तथा ध्यान में मग्न योगियों को नमस्कार हों। Those with empathy in their vision & those who shower peace, their words are like sprinkled nectar of pacification. Hymns should be sung in praise of such yogis who concentrate on pure knowledge, for a soulful rendering of such hymns can rid one of ones 'karmas'. *** (16)