________________ स्थिरता वाड्.मनः कायै-यषामङ्गाङ्गितां गता। योगिनः समशीलास्ते, ग्रामेऽरण्ये दिवा निशिं॥५॥ मन वचन तन में एकता ज्यों गंध चंदन में बसे। चंदन जहाँ सुरभि वहाँ दोनों रहे मिल एक से॥ स्थिर ऐसे योगी रहे सदा समभाव में रमते रहे। हो नगर चाहे ग्राम हो दिन रात सम-गंगा बहे // 5 // जिनके मन, वचन व काया द्वारा स्थिरता एकमेक हो गई हैं, ऐसे योगी गाँव हो या जंगल, रात्रि हो या दिन, समभाव में ही रहते हैं। The yogis who attain stability of mind, speech and body, always dwell in in equanimity irrespective of whether they are in a Village or a jungle, during the day or night. {213