________________ शुद्धात्मद्रव्यमेवाऽहं, शुद्धज्ञानं गुणो मम। नान्योऽहं न ममान्ये चे-त्यदों मोहास्त्रमुल्वणम्॥२॥ मैं शुद्ध आतम द्रव्य हूं गुण आत्म केवल ज्ञान है। इससे अलग कुछ भी नहीं मेरा मुझे यह भान है। ऐसा मनन इक शस्त्र है जो मोहनाश करे सदा। 'मैं' भान हो जाये अगर तो जीव बन जाये खुदा // 2 // मैं शुद्ध आत्म द्रव्य हूं केवल ज्ञान मेरा गुण है और इस कारण मैं भिन्न नहीं हूँ, न अन्य पदार्थ मेरे हैं, इस प्रकार का चिन्तन मोह का नाश करने वाला तीव्र शस्त्र है। The thought that in the purest form l'am the soul (atman) and my special attribute is pure "fondness'. {26}