________________ उदीरयिष्यसि स्वान्ता-दस्थैर्य पवनं यदि। समाधेर्धर्ममेघस्य, घटां विघटयिष्यसि // 7 // हे मूढ़! क्यों तं चित्त में अस्थिर पवन को फूंकता। सद्धर्म रूपी मेघ को अस्थिर पवन सब लूटता॥ निज धर्म भाव समाधि को संभाल चेतन जागकर। अस्थैर्य भाव निकाल बाहर स्थैर्य रस का पान कर॥७॥ यदि अस्थिरता रूप पवन अन्त:करण में प्रगट करेगा तो समाधि रूप धर्म बादल की घटाएं बिखर जायेगी। Ye fool, why do you blow the wind of restlessness in your heart for it scatters the clouds of 'Sat-Dharma' (the path of righteousness). Awaken your conscience to the essense of true religion, push out restlessness and drink in the nectar of tranquility. {23}