________________ अस्थिरे हृदये चित्रा, वाड्.नेत्राऽऽकारगोपना। पुंश्चल्या इव कल्याण-कारिणी न प्रकीर्तिता // 3 // कोई स्त्री असती वासना मन में छिपा किरिया करे। वह नारि वाणी हावभावों का भले गोपन करे / ज्यों वह नहीं कल्याणकारी हृदय अस्थिर कुछ करे। कल्याण हेतु नहीं हुवे, स्थिरता ही आनंद मन भरे // 3 // कुलटा स्त्री की तरह चित्त चंचल हो, फिर भी वाणी व नेत्रों के बाह्य आकार से उसे छिपाना, कल्याणकारी नहीं कहा है / (कल्याण तो इसी में है कि मन को ही स्थिर करें) As a courtesan's act of feigning devotion and her concealment of lust for another person cannot be beneficial, so a wavering mind in an apparently still body can never be blissful. {19)