________________ ज्ञानमग्नस्य यच्छर्म, तद्वक्तुं नैव शक्यते। नोपमेयं प्रियाश्लेषै- पि तच्चन्दनद्रवैः // 6 // जो ज्ञान में है पूर्ण डूबे सुख कथन ना कर सके। सुर गुरु विद्या देवता भी ज्ञान गुण करते थके। - चंदन विलेपन प्रियालिंगन का भी सुख तत्सम नहीं। उपमा न जग में एक भी श्रुत समक्ष घटती है नहीं॥६॥ ज्ञान में मग्न आत्माओं के आनंद का वर्णन कदापि शक्य नहीं स्त्री सुख अथवा चन्दन विलेपन से प्राप्त सुख के साथ भी उस सुख की तुलना संभव नहीं है। Even the gods of all knowledge agree that it is nigh impossible to describe the bliss experienced by those totally immersed in the depths of knowledge. It is not even comparable to the bliss experienced on anointing sandalwood paste or by {14}