________________ परब्रह्मणि मग्नस्य, श्लथा पौद्गलिकी कथा। क्वामी चामीकरोन्मादाः, स्फारा दारादरा क्व च // 4 // परमात्म रूप स्वरूप में हो मग्नता चेतन जगे। पुद्गल कथा उनको सदा बस जहर सम खारी लगे। जो मूढ़ चेतन को करे मदमस्त नारी वित्त भी। ना मगन को धन नारि में मद और आदर हो कभी॥४॥ परब्रह्म अर्थात् परमात्म स्वरूप में लीन आत्मा को पुद्गल की बातें भी नीरस लगती हैं। तो उसे सुवर्ण का अभिमान और स्त्रियों में (भोग में) आदर कहाँ से होगा ? One who is in unison with the pure-self (omniscient) finds the material world insipid. So, naturally he is neither intested in wealth nor in women. {12}