________________ शमशैत्यपुषो यस्य, विप्रुषोऽपि महाकथा। किं स्तुमो ज्ञानपीयूषे, तत्र सर्वांग मग्नता // 7 // श्रुत अमीरस के बिन्दु की भी होती है इक महाकथा। शम रूप शीतलता की पुष्टि करे प्रतिपल सर्वथा। उस ज्ञान अमृत मग्नता की वर्णना मैं क्या करूँ। श्रुत में सदा बन मगन तन मन का सकलतम भ्रम हरु॥७॥ उपशम की शीतलता को पुष्ट करने वाली ज्ञान-मग्नता के आनंद के एक बिंदुमात्र की भी कथा महान् है। तो उस ज्ञानानंद रूप अमृत से सम्पूर्ण मग्न आत्माओं के आनंद की क्या प्रशंसा करूँ? Great is the story of even a drop of the bliss of immersion in the knowledge that enhances the serenity of pacification. How does one find words of praise for the bliss enjoyed by the souls that are completely drowned in the nectar of the ecstasy of knowledge. {15}