________________ यस्य ज्ञानसुधासिन्धौ, परब्रह्मणि मग्नता। विषयान्तरसञ्चार-स्तस्य हालाहलोपमः / / 2 / / सद्ज्ञान अमृत सिंधु सम पर-ब्रह्म में जो लीन है। परमात्म में हो मग्नता तो बजे शिव सुख बीन है। रस रूप आदिक अन्य विषयों में प्रवृत्ति जहर सम। जो ज्ञान में बनता मगन वो अन्य में जाता न रम॥२॥ . जिसे ज्ञान स्वरूप अमृत सागर ऐसे पर ब्रह्म अर्थात् परमात्मा में लीनता होती है, उसे अन्य विषयों में हो रही प्रवृत्ति जहर के समान अनिष्ट लगती है। The flute of happiness plays when one immersed in the manna of knowledge concentrates on 'Brahma', The Omnipresent and omniscient. Life's other attraction are like poison for such a man. {10}