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बंध प्रकृति १०१ काष्टक ० १ की वष योग प्रकृनियों में मे मिच्यात १ नायक वर १ नरक गति नरक गत्यान: नरक आयु २५ एकेन्द्री प्रादि जाति ४ इन्टक संस्थान १ पाटि महनन १ आतप साधारण मूक्ष्म अस्थावर अपयोति ४ मे १६ घटाकर शेष १०१ का बंध होना है। उदय प्रकृति १०६ कोप्टर का उदय योग १. प्रकृतियों में से मिथ्यात १ एकेन्द्री आदि जाति ४ नरक गत्यानपूर्वी १ पातप । साधारण सूक्ष्म प्रस्यावर अपर्याप्त ११ घटाकर मेष १०६ का उदय होता है ये मान्यता प्राचारीय यतीपमा आचार्य मत के अनुसार है परन्तु भूततली प्राचार्य महाराज अपर्याप्त अवस्था में स्थावर १ एकेन्द्री प्रादि जाति का उपय भी अपर्याप्त अवस्था के प्राहार पर्याप्त तक मानते हैं। सत्ता १४५ कोष्टक न.१ की १४ को सत्ता प्रकृतियों में से प्राहारक द्विक २ और तीर्थकर की सत्ता वाले जीव सासादन गुण स्थान में नहीं पाते हैं नौवे मुरग लागे: नर र शोघे ही मिथ्यात गुण स्थान में पहुंच जाते है। संख्या असंख्यात । क्षेत्र लोक का प्रसंच्यातवां भाग । सर्शन लोक का असंख्यानबां माग । काल नाना जीवों की अपेक्षा सर्व काल १ जीब को अपेक्षा १ आंवनी से अन्तर्मुहुर्त काल । अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं १ जीव की अपेक्षा पर्व पुगदल परावर्तन काल । योनि कोष्टक नं. १ को चौरासी लाख योनि में से पग्नि काय ७ लाख और वायु काय 5 लाख कुल १४ लाख घटाकर शेष ७० लाख कारणा सासावन गुगण स्थान वाला मरकर अग्नि काय वायु काय में जन्म नहीं लेता है। कुल १६६३ लाख कोटि का टक नं. १ के १६६: लाभ को में से अग्नि काय वात्र कोटि वायु काय ७ लाख कोटि घट जाते हैं कारण इनमें सामादन गुण स्थान नाला मरका जन्म नहीं लेता है।