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चारित्र चक्रवर्ती - एक अध्ययन
पिचहत्तर कोल्हापुर राज्य के दीवान बहादुर श्री लट्ठे जी द्वारा किये गये सत्प्रयत्नों के फल स्वरूप कोल्हापुर राज्य में बाल विवाह प्रतिबंधक कानून व्यवहार में आया था ! | '
इसी क्रम में आचार्य श्री ने अनाथोद्धार व बालिकोद्धार के कार्य हेतु भी न सिर्फ प्रेरणायें दी, अपितु तत् कार्य को करने हेतु आगम- परिवेश में मार्ग-दर्शन भी दिये, जिसके फलस्वरूप शेड़वाल अनाथाश्रम आदि शैक्षणिक संस्थायें उदय को प्राप्त हुई ||
निश्चित ही इस विषय में इससे अधिक कहने को इस लेख में स्थान नहीं, बुधजनों के लिये इतना पर्याप्त है | अंत में हम सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि आचार्य श्री का जीवन जैसे लोकोत्तर मंगल स्वरूप से परिणत था, वैसे ही लौकिक मंगल स्वरूप भी ॥ आचार्य श्री का यह मंगल स्वरूप ॐ कार की तरह जहाँ धर्म व मोक्ष पुरुषार्थ की राह में आने वाली बाधाओं के लिये जहाँ वज्रपात रूप था, वहीं संसारी जनों के अर्थ व काम पुरुषार्थ की राह आने वाली बाधाओं के लिये दिवार रूप ॥
५) दूरदर्शिता से प्रभावित : हममें से कई चिंतक ऐस भी हैं, जो कि दर्शन, ज्ञान, चारित्र के प्रति श्रद्धा तो रखते हैं, किंतु हृदय से प्रभावित नहीं होते ।। उनका कहना है कि व्यक्ति के निर्णयों में निहित दूरदर्शिता से ही उसकी मानसिक परिपक्वता का प्रतिबोध होता है । यही मानसिक परिपक्वता तीर्थंकर के अनुज के रूप में नेतृत्व की योग्यता सिद्ध करतो है । नेतृत्व की योग्यता के अभाव में आप अनुयायी हो सकते हैं, किन्तु प्रामाणिक नहीं हो सकते || प्रामाणिकता तो नेतृत्व की योग्यता से ही आती है।
इस मानस के चिंतकों के प्रति भी आचार्य भगवंत के पास सामग्री का अभाव नहीं, अपितु विपुलता ही थी ।
निर्णय की सामर्थ्य दो प्रकार की होती है, जिसमें से पहली है निसर्गज व दूसरी पूर्वापर संबंधों का मिलान कर किसी कार्य की इति हेतु वैचारिक व पुरुषार्थपरक ।।
आचार्य श्री में दोनों प्रकार की बुद्धिमत्ता थी ||
निसर्गज दूरदर्शिता के कई उदाहरणों में से दो उदाहरणों को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं । राजाखेड़ा में कुछ अनुत्तम होने वाला है, इसका आभास उन्हें निसर्गतः हो गया और संघ को उन्होंने सामायिक कमरे में करने का आदेश दिया । इस आदेश ने एक महान अनहोनी को टाल दिया ।। ठीक ऐसा ही एक आदेश शिखरजी की यात्रा के मध्य कोपर गाँव (महाराष्ट्र) के समीप दिया || अचानक आचार्य श्री आज्ञा हुई कि जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी ग्राम व नदी पार कर लो, व जितनी दूर हो सके उतनी दूर निकल चलो ॥
संघ बहुत दूर निकल गया । उसी रात्रि में बारिश व नदी का ऐसा भयंकर तांडव हुआ
१. चारित्र - चक्रवर्ती, संस्करण १६६७, मूल शीर्षक: पावन स्मृति, उप शीर्षक: बाल प्रतिबंधक
कानून के
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