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१५ सितम्बर - आज आचार्य श्री के पीछी और कमण्डल के ही दर्शन हो पाये।
१५ सितम्बर १९५५ सल्लेखना का आज ३३ वां दिन था। आचार्य श्री को आज अशक्तता तो थी ही, नाड़ी की गति भी धीमी रफ्तार से चल रही थी । दर्शनार्थियों का अति आग्रह होने पर भी आचार्य श्री के दर्शन नहीं कराये गये। ऐसी नाजुक हालत पर भी महाराज आत्म साधना में लीन रहे। जनता को आचार्य श्री की पूर्व में उपयोग में लाई गई पीछी व कमंडल के दर्शन कराये गये।
१६ सितम्बर - आचार्य श्री उवाच .
१६ सितम्बर १९५५ आज सल्लेखना का ३४ वां दिन था। जल न ग्रहण करने का १२ वां । हालत बहुत ही नाजुक थी, फिर भी आत्म ध्यान में गुफा में समय व्यतीत किया। आज दिन सर सेठ भागचंदजी सोनी अजमेर, रा. ब. सेठ हीरालालजी पाटनी किशनगढ, सेठ गंभीरमलजी पांड्या कुचामन और सेठ मोहनलाल जी बड़जात्या जयपुर से दर्शनार्थ पधारे थे।
आचार्य श्री ने मुझसे
कहाभरमप्पा, अब तक तुम हमारी जबर्दस्ती सेवा करते रहे, किंतु अब
नहीं करना, हमने इंगिनीमरण व्रत लिया है। इसके पश्चात् आचार्य श्री ३ दिन अर्थात १८ सितम्बर तक एक ही करवट
लेटे रहे | -क्षुल्लक सिद्धिसागर (व. भरमप्पा)
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