Book Title: Charitra Chakravarti
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 764
________________ ५८१ चारित्र चक्रवर्ती ने दो क्षुल्लकों को जैनेश्वरी दीक्षा दी। आगे मैं पापनाश करनेवाले उन दोनों के नाम यथा क्रम से कहता हूँ। पहले मुनि का नाम दयामूर्ति आदिसागर है और दूसरे धीर वीर मेरे विद्यागुरु सुधर्मसागर हैं। ये सुधर्मसागर बहुत मनोज्ञ हैं, अविद्या को नाश करनेवाले हैं तथा इनकी बुद्धि बहुत श्रेष्ठ है। इनके भाई भी सरस्वती के पुत्र के समान विद्वान् हैं। यशोधरेण भव्येन नेमिसागरयोगिना। द्वाभ्यां हि ब्रह्मचारिभ्यां क्षुल्लकेन समं तदा ॥३०॥ अर्थ- उस गोरल क्षेत्र को अत्यंत मनोहर, एकान्त और उपद्रव रहित देखकर गुरुवर्य आचार्य ने मुनि नेमिसागर के साथ क्षुल्लक भव्य यशोधरा के साथ और दो ब्रह्मचारियों के साथ वहीं पर वर्षायोग धारण किया। इतश्चाचार्यवर्येण क्षुलकश्चार्हदासकः । दीक्षितश्च जिनमति सुमतिमति क्षुल्लिके ॥३२॥ सर्वसंघं समादाय आचार्यः शान्तिसागरः । तारंगासिद्धिभूमिं च वंदनार्थं ततोऽचलत्॥३३॥ अर्थ- इधर आचार्य ने दीक्षा देकर अर्हद्दास क्षुल्लक बनाया और जिनमति सुमतिमति दो क्षुल्लिकाएं बनाई। तदनंतर आचार्य शांतिसागर स्वामी संघ को लेकर सिद्ध क्षेत्र तारंगा की वंदना करने के लिये चले। ज्यायांश्च देवगौडाख्यो बंधुर्धर्मपरायणः । त्यक्त्वा मोहं कुटुंब चागृहीच क्षुल्लकव्रतम्॥३४॥ अर्थ- इनका सबसे बड़ा भाई देवगौडा है, वह बहुत ही धर्मात्मा है। उसने भी मोह और कुटंब को छोड़कर क्षुल्लक व्रत धारण कर लिये हैं। हे क्षमावीर ! हे धीर ! कृपाब्धे करुणानिधे । शक्तः शक्रोप्यशक्तोस्ति कथितुं ते चरित्रकम्॥३५॥ मम विद्याविहीनस्य मन्दबुद्धेः कथैव का। तथापि तवभक्त्यैव रचितं के वलं मया ॥३६॥ श्रीमान् तवैव शिष्येण कुंथुसागरयोगिना। शान्तिदं त्वचरित्रं च संभूयात्स्वर्गमोक्षदम् ॥३७॥ अर्थ- हे क्षमाधारण करनेवालों में वीर, हे धीर, हे कृपा के सागर, हे करुणानिधि, शक्र वा इन्द्र यद्यपि समर्थ है तथापि आपका चरित्र कहने के लिये असमर्थ है, फिर भला विद्यारहित और मंद बुद्धि को धारण करने वाले मेरी तो बात ही क्या है। तथापि हे श्रीमन् ! आपके ही शिष्य मुझ कुंथुसागर मुनि ने केवल आपकी भक्ति के वश होकर ही इस चरित्र को बनाया है। ऐसा यह शांति देनेवाला आपका जीवन-चरित्र स्वर्ग मोक्ष का देनेवाला हो। ॥समाप्तोऽयं ग्रंथः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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