Book Title: Charitra Chakravarti
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 762
________________ ५७६ चारित्र चक्रवर्ती अर्थ- वीरनिर्वाण संवत् चौबीस सौ छयालीस के शुभ अष्टान्हिका के पर्व में फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी की महातिथि के दिन सांयकाल के शुभमुहूर्त में योगिराज उन शांतिसागर महाराज ने अपने शुद्ध हृदय से देव, धर्म, गुरु और श्रावकों की साक्षीपूर्वक अपने गुरु श्रीदेवेन्द्रकीर्ति के समीप जैनेश्वरी शुभ दीक्षा धारण की। उस समय समस्त श्रावक लोग गीत और बाजों के शब्दों से तथा जय जयकार के मधुर शब्दों से उत्सव मना रहे थे व धर्म की वृद्धि होने से बहुत ही हर्ष मना रहे थे । मार्गे संबोधयन् भव्यान् समडोलिपुरं गतः । चातुर्मासं च कृतवान् जनान् ज्ञात्वा सुधार्मिकान् ॥११॥ निषिद्धैर्गुरुणा दत्तमाचार्य पदमुत्तमम् । पंडितैर्मुनिभिः श्राद्धैः संघैर्मत्वा सुयोग्यकम् ॥१२॥ अर्थ- मार्ग में अनेक भव्यजीवों को उपदेश देते हुए वे मुनिराज समडोली नाम के गांव में पहुंचे और वहां के लोगों को धार्मिक समझकर वहीं पर चातुर्मास योग धारण किया। वहां पर गुरुराज के निषेध करने पर भी पंडितों ने मुनियों ने, श्रावकों ने तथा सब संघ ने अत्यंत सुयोग्य समझकर उन मुनिराज शांतिसागर को उत्तम आचार्य पद दिया। दयालुः गुरुभक्तश्च नीतिज्ञो वीरसागरः ॥१३॥ क्षमानिधिस्तपस्वी च योगी श्रीने मिसागरः । दृढव्रती द्वितीयोपि शान्तिदो नेमिसागरः ॥१४॥ ऐते त्रयोऽनगाराश्च संजाता धर्मवर्द्धकाः । एवं दक्षिणे महती जाता धर्मप्रभावना ॥ १५॥ अर्थ - इनके सिवाय (इनके संघ में) तीन मुनि हुए। उनमें से दयालु गुरुभक्त और नीति को जाननेवाले वीरसागर हैं, क्षमा के निधि योगी और तपस्वी श्री नेमिसागर हैं और शांति देनेवाले दृढव्रती दूसरे नेमिसागर हैं। ये तीनों ही मुनिधर्म को बढ़ाने वाले हैं। इस प्रकार आचार्य शांतिसागर के निमित्त से दक्षिण देश में धर्म की महाप्रभावना हुई है। वंदित्वा तच्छुभं क्षेत्रं निखिलांश्च जिनालयान् । चतुर्विंशतिशब्दे षट्पंचाशत्तमे शुभे ॥१६॥ मार्गशीर्षे शुभे मासे पौर्णिमायां शुभे दिने । मोक्षं गते जिने वीरे चत्वारो मुनयस्तदा ॥ १७॥ प्रभाते दीक्षितास्तत्र शान्तिसागरयो गिना । तेषां नामानि वर्ण्यन्ते दीक्षितानां यथाक्रमम् ॥ १८॥ अर्थ- आचार्य महाराज ने उस शुभ क्षेत्र (सोनागिरि) की वंदना की और समस्त जिनालयों की वंदना की फिर वीरनिर्वाण सम्वत् चौबीस सौ छप्पन के मगसिर के शुभ महीने में पौर्णमासी शुभ दिन प्रातःकाल के समय आचार्य शांतिसागर ने चार एल्लकों को श्री जैनश्वरी दीक्षा दी। आगे उन दीक्षित हुए मुनियों के यथा क्रम से नाम कहते हैं। चन्द्रसागरयोगीन्द्रः धर्ममूर्तिः प्रभाववान् । विचक्षणों दयामूर्ति मुनिः श्रीपार्श्व सागरः ॥ १६॥ चतुर्विंशतिपूज्यानां स्तुतिकर्ता प्रसन्नधीः । कर्ताहमस्य वृत्तस्य तृतीयः कुंथुसागरः ॥ २०॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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