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चारित्र चक्रवर्ती महाराज ने शांत भाव से सिद्ध भगवान् का स्मरण किया। उन्होंने सिंह का कान पकड़ा। इतने में नींदखुल गई। इसका महाराज ने यह अर्थ निकला कि उनका जीवन संकट में है। विपत्ति जीवित है, किन्तु अन्नत्याग द्वारा अकालमरणटलेगा, ऐसा प्रतीत हुआ।
४) कुंथुलगिरि में : चौथा स्वप्न कुंथलगिरि में इस प्रकार आया था कि एक समय महाराज जंगल में अकेले खड़े थे। एक मजबूत सींगों वाला भयंकर जंगली भैंसा रोषपूर्वक दौड़ता हुआ महाराज पर झपटा। उस समय एक मुनि हाथ में पिच्छी लेकर दस फीट की दूरी पर आ गये। उनके हाथ में एक तीन हाथ लंबी लकड़ी थी। उससे उस मुनि ने भैसे को खूब मारा। पिटाई के कारणथक कर वह भैंसा गिर पड़ा। उस समय महाराज सिद्ध भगवान् का जाप कर रहे थे। मुनि ने महाराज सेकहा कि अब आप संकट मुक्त हैं, चले जाइये। महाराज ने कहा कि मुनि होकर तुमने इस प्रकार हिंसाका कार्यक्यों किया? यहाँसे दूर चलेजाओ। इस स्वप्न से आचार्य महाराज ने सोचा कि विपत्ति तो दूर हो गई, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशांत मुनि का दर्शन आगे दुर्लभ होगा। महाराज ने मौन पूर्वक पाँच उपवास का नियम लियाथा। .
इनस्वप्नोंकावर्णन महाराज ने अपने विश्वासपात्र भक्तों को सुनायाथा, जिनके समक्ष वेअपनेमनकीबातसंकोचरहितहोकहतेथे।
आचार्य श्री के मुनि दीक्षा गुरु के विषय में पं. सुमेरुचंद्रजी दिवाकर का स्पष्टीकरण
विद्वत्रत्म सुमेरुचन्द्र दिवाकर शास्त्री
दिवाकर सदन बी. ए., एस एल. बी , धर्म वियाकर, न्यावती
सिवनी (म.प्र.) जनमामिदम्ब: विशेम बिशायि - . माता निशुबमात जी ने पसरल्य १.८ मतणाशमान साधुराज आचार्य शांतिसागर महाराजले कारे पर द्वारा निरनी गई रचना शारिननसनी और जगता को परिता प्रयामा उपयोगी कार्य किया है।
___मह बात उल्लेखनीय है कि शांति सामान को मुनि दीक्षा प्रदाता देवेहमी महाराज थे।
निमेरक - सुमेरुचंद्र दिवाकर
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