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श्रमण संस्कृति के द्योतक ४२ बिंदु ....
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आदि में जैन लॉ के अनुसार जैनों के कई फैसले हो चुके हैं। भद्रबाहुसंहिता, अर्हनूनीति, इंद्रनंदिसंहिता आदि जैनों के दायभाग आदि के ग्रंथ भी हिन्दुओं के ग्रंथ से सर्वथा जुदे हैं। (२६) स्व-स्व मत में प्रचलित शक संवत् की अपेक्षा :भिन्न २ संप्रदायवालों के शक चलते हैं, जैसे मुसलमानों का शक, ख्रिस्तियों का शक, विक्रम शक, शालिवाहन शक इसी प्रकार जैन धर्म में महावीर भगवान का शक चलता है, जो कि सब शकों से पहले का है अर्थात् जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर भगवान के निर्वाण के समय से चलता है, जिसको आज २४४७ वर्ष हो चुके हैं। यह भी अन्य धर्मों जैन धर्म को पृथक् सिद्ध करता है।
(२७) विश्व मान्य चिंतकों की शोध - बुद्धि से उत्पन्न निष्कर्षों की अपेक्षा :- जर्मनी के सुप्रसिद्ध संस्कृतज्ञ प्रो. एच्. जे. कोर्बा ने ऑक्सफोर्ड के धार्मिक परिषद में जो ऐतिहासिक व्याख्यान दिया था, उसमें कहा था कि जैनधर्म सर्वथा स्वतंत्र धर्म है । मेरा विश्वास है कि वह किसी का अनुकरण नहीं करता और इसीलिये प्राचीन भारतवर्ष के तत्त्वज्ञान का और धर्मपद्धति का अध्ययन करनेवालों के लिये उसका अध्ययन बड़े महत्व की वस्तु है ।
(२८) तटस्थ बुद्धिजीवियों द्वारा अध्ययन के पश्चात् दिये गये निष्कर्षों की अपेक्षा ( 1 ) :- सर कुमारस्वामी (चीफ जस्टिज मद्रास हायकोर्ट) कहते हैं कि जैनधर्म यह हिन्दुधर्म की शाखा नहीं है।
(२) हिंदु मानस के बुद्धिजीवियों द्वारा अध्ययन के पश्चात् दिये गये निष्कर्षों की अपेक्षा (२) :- न्यायमूर्ति रांगणेकर ( हायकोर्ट, मुंबई) का कहना है कि इस देश में जैनधर्म ब्राह्मण धर्म के जन्म के बहुत पहले से प्रसिद्ध था ।
(३०) हिंदुओं के धर्म गुरुओं की निष्पत्ति ( ३ ) :- श्री शंकराचार्य जगद्गुरु IT कथन है कि जैनधर्म यह बहुत ही प्राचीन धर्म है।
(३१) विश्व मान्य हिंदु इतिहासकारों के शोध से उत्पन्न निष्कर्षों की अपेक्षा (४) :- इतिहासज्ञ डॉ. प्राणनाथ कहते हैं कि- इतिहास ने यह सिद्ध कर दिया है कि आज से ५ हजार वर्ष पूर्व से भी पहले जैन धर्म का अस्तित्व कायम था।
(३२) स्वयं पंडित जवाहरलाल जी का मत ( ५ ) :- स्वयं पं. जवाहरलाल नेहरू ने डिस्कव्हरी ऑफ इंडिया में लिखा है कि हिन्दु संस्कृति यह भारतीय संस्कृति का एक अंश है। जैन तथा बौद्ध धर्मीय भी पूर्ण भारतीय हैं, परन्तु वे हिंदु नहीं हैं।
(३३) जैन संस्कृति की उत्पत्ति की समीक्षा करने वाले इतिहासकारों के मत की अपेक्षा ( ६ ) :- जी. जे. आर. फरलांग साहब ने The short studies in science of comparative religion में लिखा है कि It is impossible to find a
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