Book Title: Charitra Chakravarti
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 755
________________ बम्बई हायकोर्ट के आदेश का हिन्दी अनुवाद यह प्रार्थना पत्र शोलापुर जिले के आकलूज ग्राम के दिगम्बर जैन समाज के कुछ लोगों ने पेश किया है। अकलूज में एक जैन मंदिर है और इस प्रार्थना पत्र से प्रश्न यह उठाया गया है कि हरिजनों को १९४७ के बंबई हरिजन मन्दिर प्रवेश कानून के अनुसार उस मन्दिर में जाने का अधिकार है या नहीं ? वह कानून इसलिए बनाया गया था कि हरिजनों को जो कुछ असुविधायें उठानी पड़ रहीं हैं, उन्हें दूर किया जाय और उन सब बड़ी असुविधाओं में से एक यह है कि हरिजनों को हिन्दू मन्दिरों अन्य हिन्दुओं के साथ पूजा नहीं करने दी जाती है । (जैन पक्ष के एडवोकेट) श्री दास का कहना है कि इस कानून के निर्माण का ठीक अभिप्राय यह है कि यदि हिन्दुओं को कानून या रिवाजन इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार होता, तब तो इस (जैन) मंदिर में हरिजनों को भी वैसा अधिकार मिल जाता, किंतु जब हिन्दुओं को ही इस मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है, तब हरिजनों को भी इस कानून से वैसा कोई अधिकार कैसे दिया जा सकता है अर्थात् नहीं दिया जा सकता। दूसरे पक्ष का दावा यह है, जो कि (बम्बई) सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने पेश किया है कि इस कानून से सभी जैन मन्दिर सभी हिन्दुओं (स्वर्णों या हरिजनों) के लिए खोल दिये गये हैं, और इस कानून से जो अधिकार स्वर्ण हिन्दुओं को (जैन मंदिरों के लिये) दिये गये हैं. उन (अधिकारों ) का उपयोग हरिजन भी कर सकते हैं। इन दोनों में से कौन सा दावा ठीक है इसका निर्णय करने के लिये यह आवश्यक है कि इस कानून के प्रयोजन व उद्देश्य दोनों को देखा जाय, और उस भाषा को भी देखा जाय, जिसका प्रयोग इस कानून के उस प्रयोजन व उद्देश्य को कार्य में परिणत करने के लिये किया गया है। दूसरी धारा व्याख्या से सम्बन्ध रखती है और जिस व्याख्या पर हमें विचार करना है वह "हिन्दु " और " मन्दिर" शब्दों की व्याख्या है। "हिन्दु” की व्याख्या में कहा गया है कि उसमें जैन भी शामिल हैं। और " मन्दिर" की व्याख्या में कहा गया है कि : 46 'वह स्थान, चाहे वह किसी भी नाम से क्यों न पुकारा जाता हो और चाहे किसी से भी सम्बन्ध क्यों न रखता हो, जिसको कि, हिन्दु समाज अथवा उसका कोई समुदाय धार्मिक पूजा के लिये, रिवाज के तौर पर, व्यवहार के तौर पर अथवा अन्य रूप से काम में लाता हो और उसमें चाहे वह जमीन हो या चाहे उसमें कोई मूर्ति हो मंदिर है।” तीसरी धारा में हरिजनों को कुछ अधिकार दिये गये हैं, वह धारा इस प्रकार है : "किसी भी ट्रष्ट के विधान की शर्तों में, धर्मादे की शर्तों में अथवा सनद की शर्तों में, किसी भी अदालत के हुक्म या डिग्री में अथवा किसी भी कानून या रिवाज में, जो कि इस समय प्रचलित है, उसमें कुछ भी क्यों न कहा गया हो, प्रत्येक मन्दिर हरिजनों के लिये पूजा करने को वैसे ही और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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