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अचार्य श्री व उनके प्रथम शिष्य प्रथम पट्टाचार्य १०८ श्री वीरसागरजी महाराज
आचार्य श्री की अंतिम आज्ञा प्रथम पट्टाचार्य
१०८ श्री वीरसागरजी महाराज के लिए :“आगम के अनुसार प्रवृत्ति करना, हमारी ही तरह समाधि धारण करना और सुयोग्य शिष्य को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना, जिससेपरम्पराबराबरचले।"
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