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स्वर्गारोहण की रात्रि का वर्णन आचार्य महाराज का स्वर्गारोहण भादों सुदी दूज को ३६ वें दिन प्रभात में ६ बजकर ५० मिनट पर हुआ था। उस दिन श्री शान्तिनाथ भुजबली वैद्य, बारामती महाराज की कुटी में रात्रि भर रहे थे। उन्होंने महराज के विषय में इस प्रकार बताया- दो बजे रात को हमने जब महाराज की नाड़ी देखी , तो उनकी गति बिगड़ी हुई अनियमित थी। तीन, चार ठोकर देने के बाद रूकती थी, फिर चलती थी। चार बजे सबरे श्वास कुछ जोर से चलने लगा, तब हमने कहा, अब सावधानी की जरूरत है। अंत अत्यंत समीप है। सबेरे ६ बजे महाराज को संस्तर से उठाने का विचार क्षुल्लक सिद्धिसागर (ब्र. भरमप्पा) ने व्यक्त किया। महाराज ने सिर हिला कर निषेध किया। इस समय तक वे सावधान थे। उस समय श्वास जोर-जोर से चलती थी। बीच में धीरे-धीरे रूककर फिर चलने लगती थी। उस समय महाराज के कान में भट्टारक लक्ष्मीसेनजी ॐ नम: सिद्धेभ्य: तथा णमोकार मंत्र सुनाते थे। ६ बजकर ४० मीनिट पर मेरे कहने पर महाराज को बैठाया। कारण, मैंने कहा कि अब देर नहीं है । उनको उठाया पद्मासन किया, तब श्वास मंद हो गई। ओष्ठ अतिमन्द रूप से हिलते हुए सूचित करते थे कि वे जाप कर रहे हैं। एक दीर्घ श्वास आया और हमारा सौभाग्य सूर्य अस्त हो गया। उस समय उनके मुख से अन्त में ॐ सिद्धाय शब्द मन्द ध्वनि में निकले थे। श्री शान्तिनाथ भुजबली वैद्य, बासमती ने यह भी कहा कि- रात में दो बजे से हाथ-पैर ठण्डे हो रहे थे। रूधिर का संचार कम होता जा रहा था। हमारी धारणा है कि महाराज का प्राणोत्क्रमण नेत्रों के द्वारा हुआ। मुख पर जीवित सदृश तेज विद्यमान रहा आया था।
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