________________
श्रमणों के संस्मरण स्त्री-पुरुष केशलोंच देख रहे थे। मैंने देखा कि आधे घण्टे के भीतर ही उन्होंने केशलोंच कर लिया। किसी की सहायता नहीं ली। चेहरे पर किसी प्रकार की विकृति नहीं थी। धीरता और गंभीरता की वे मूर्ति थे। जैसे कोई तिनका तोड़ता है, उस तरह झटका देते हुए सिर तथा दाढ़ी के बालों को उखाड़ते जाते थे।
लो! केशलोंच हो गया। उन्होंने पिच्छि हाथ में लेकर जिनेन्द्र को प्रणाम किया, तीर्थंकरों की वन्दना की।
अब उनका मौन नहीं है, ऐसा सोचकर धीरे से मैंने पूछा- “महाराज अभी आप केशलोंच कर रहे थे, उस समय आपको पीड़ा होती थी कि नहीं ?"
उत्तर-"अरे बाबा, रंचमात्र भी कष्ट नहीं होता था। लेशमात्र भी वेदना नहीं थी। हमें ऐसा नहीं मालूम पड़ता था कि हमने अपने केशों का लोंच किया है। हमें तो ऐसा लगा कि मस्तक पर केशों का समूह पड़ा था, उसे हमने अलग कर दिया। बताओ, हमने और क्या किया ? देखो, एक मर्म की बात बताते हैं। शरीर पर हमारा लक्ष्य नहीं रहता है। केशलोंच शुरू करने के पहिले हमने जिन भगवान् का स्मरण कियां और शरीर से कहा, अरे शरीर ! हमारी आत्मा जुदी है, तू जुदा । 'कां रड़तोस'(अरे क्यों रोता हैं )? हमारातेरा क्या सम्बन्ध ? बस, केशलोंच करने लगे। हमें ऐसा नहीं मालूम पड़ा कि हमने अपना केशलोंच किया है।" स्वप्न में गुरुदर्शन
प्रश्न-“महाराज ! मैं तो आचार्य महाराज के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ। यह तो बताइए कि स्वप्न में उनका दर्शन होता है या नहीं ?"
उत्तर-“जागृत अवस्था के भाव स्वप्न में आते हैं। अनेक बार उनका दर्शन होता है। वे यही कहते हैं कि अपने व्रत में स्थिर रहकर आत्मचिन्तन करो।" रुद्रप्पा की समाधि
उन्होंने आचार्य महाराज के गृहस्थ अवस्था के मित्र लिंगायत धर्मावलम्बी श्रीमन्त रुद्रप्पा की बात सुनाई। सत्यव्रती रुद्रप्पा वेदान्त का बड़ा पण्डित था। वह अत्यन्त निष्कलंक व्यक्ति था। वह अपने घर में किसी से बात न कर दिन भर मौन बैठता था। कभी-कभी हमारे घर आकर आचार्य महाराज से तत्त्वचर्चा करता और उनका उपदेश सुनता था। __ एक समय की बात है कि भोजग्राम में प्लेग हो गया। हम सब अपने माता-पिता के साथ अपने मामा के यहाँ यरनाल ग्राम में पहुँचे। प्लेग भीषण रूप धारण कर रहा था। सुनने में आया कि रुद्रप्पा को प्लेग हो गया। प्लेग की गाँठ उठ आई। उस समय लोग प्लेग से इतना घबराते थे कि बिरला व्यक्ति ही कुटुम्बी होते हुए बीमार के पास जाता था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org