________________
१८ अगस्त - आचार्य श्री मुख्य मन्दिर में ध्यानस्थ मुद्रा में।
१८ अगस्त १९५५
जल ग्रहण नहीं किया । प्रात: काल अभिषेक के समय तथा मध्याह्न में आचार्य श्री बाहर पधारे और जनता को दर्शनों का लाभ कराया। सारा समय आत्मध्यान में व्यतीत किया।
१९ अगस्त - आचार्य श्री गहन चिंतन की मुद्रा में।
TO
१९ अगस्त १९५५ -
आचार्य श्री ने आज पूरा दिन जल ग्रहण नहीं किया व सारा समय आत्म चिंतन, मनन एवं ध्यान में व्यतीत किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org