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२६ अगस्त - आचार्य श्री ने दर्शनार्थ उपस्थित विशाल जनसमूह के समक्ष महासभा के लिये आशीर्वचन कहे ।
२६ अगस्त १९५५
आज जल ग्रहण किया । दोनों समय जनता को दर्शन व शुभाशीर्वाद दिया । आज दिन महासभा के महामंत्री लाला परसादीलालजी पाटनी दिल्ली और लाला राजकृष्ण जी दिल्ली दर्शनार्थ पधारे । विशेष बात यह हुई कि तीन हजार जनता के समक्ष आचार्य श्री ने क्षमाभाव ग्रहण किया और कहा कि वे सब पुरानी बातों को भूल गये हैं व यह भी चाहते हैं कि प्राणीमात्र उनको क्षमा करे। आचार्य श्री ने इस समय महासभा को भी याद किया। 'जब महाराज से महासभा के महामंत्री जी ने महासभा के लिए कोई संदेश देने की प्रार्थना की तो महाराजजी ने कहामहासभा सदैव की तरह धर्म रक्षा में सदा कटिबद्ध रहे, धर्म को कभी न भूले और धर्म के विरूद्ध कोई भी कार्य न करे ।
१२७ अगस्त - आचार्य श्री उवाच ......
२७ अगस्त १९५५ आज जल ग्रहण किया। अभिषेक के समय तथा दोपहर में भी आचार्य श्री ने उपस्थित जनता को दर्शन देकर जनता को शुभाशीर्वाद दिया । इन्दौर से श्री स्या. वा. वि. वा. पं. खूबचंद जी शास्त्री, श्री सेठ रतनचंद्र हीराचंदजी बम्बई दर्शनार्थ पधारे। दोपहर में श्री माणिकचन्द जी भिसीकर, स्या. वा. वि. पं. खूबचंद्र जी शास्त्री, जैन जाति भूषण लाला परसादीलालजी पाटनी (महामंत्री महासभा), लाला राजकृष्ण दिल्ली आदि ने जनता को संबोधा । विशेष बात यह रही कि गुफा में जब आचार्य श्री विराजमान थे तब उपस्थित लोगों ने निवेदन किया कि महाराज कुछ बांचकर सुनायें ? तब आचार्य श्री ने उत्तर दिया कि मै स्वंय जागृत हूं, मैंने इंगिनीमरण सन्यास लिया है, मुझे किसी की अपेक्षा नहीं है अपनी आत्मा के ध्यान में ही मग्न रहता हूँ ।
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"मैं स्वयं जागूत हूँ । मैंने इंगिनीमरण सभ्यास लिया है।
मुझे किसी की अपेक्षा नहीं है ।
अपनी आत्मा के ध्यान में ही
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मग्न रहता हैं
आचार्य श्री
(कुछ बांचकर आपको सुनायें क्या ? उपस्थित लोगों द्वारा किये गये इस निवेदन पर आचार्य श्री का उत्तर)
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