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९ सितम्बर - श्री १०८ मुनि पिहितास्रव प्रवचन करते हुए । उनके पीछे विराजमान है १०८ आ. श्री विद्यानंदजी जो कि उस समय क्षुल्लक अवस्था में थे और उनका नाम था क्षुल्लक श्री १०५ पार्श्वकीर्तिजी ।
९ सितम्बर १९५५
आज सल्लेखना का २७ वां व जल ग्रहण नहीं करने का ५ वां दिन था । दोनों समय आचार्य श्री ने जनता को दर्शन देकर कृतकृत्य किया । मध्यान्ह में सिर्फ ७-८ मिनिट ही ठहरे और शुभाशीर्वाद देकर गुफा में चले गये । आज दिन सूरत से जैनमित्र के सम्पादक श्री मूलचंद किसनदासजी कपाड़िया भी दर्शनार्थ पधारे। जनता में आचार्य श्री का रिकार्डिंग भाषण सुनाया गया । विशेष बात यह हुई कि परम पूज्य श्री १०८ आचार्य बीरसागर जी का आया हुआ पत्र आचार्य श्री को पढ़कर सुनाया गया।
श्री सागर दि.
१० सितम्बर - आचार्य श्री अंतिम बार मुख्य मन्दिर के दर्शनार्थ जाते हुए ।
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१० सितम्बर १९५५
आज सल्लेखना का २८ वां दिन था। अशक्तता बहुत ज्यादा थी, फिर भी प्रातः अभिषेक के समय आचार्य श्री पधारे और आधा घंटा ठहरे थे । प्रातः अभिषेक के समय पधारने का यह अंतिम दिन था । इसके बाद अभिषेक के समय आचार्य श्री नहीं पधारे । दोपहर मे आचार्य श्री के दर्शनों का लाभ जनता को नहीं मिला। हालत बहुत ही चिंताजनक रही। आज शीत का भी असर मालूम हुआ ।
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