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२४ अगस्त - आचार्य श्री की सल्लेखना स्थली का मनोहारी दृश्य।
२४ अगस्त १९५५
जल ग्रहण किया। दोनों समय जनता को दर्शन दिये। देहली से लाला महावीरप्रसाद जी ठेकेदार, रतनलालजी मादिपुरिया, लाला उल्फतराय जी, रघुवीरसिंह जी जैना वाच वाले, पं. मक्खनलालजी, पं. इन्द्रलालजी शास्त्री जयपुर, व. सूरजमलजी,वं.पं. श्रीलालजी दर्शनार्थ पधारे । आज क्षुलकों की संख्या १२, क्षुल्लिकाएं ५ और बह्मचारी १५ हो गये। सल्लेखना के समय शास्त्रानुसार दिगम्बर यति आचार्य पद छोड़ देते हैं, अत: आचार्य श्री ने भी तदनुसार आचार्य पद त्याग करने की घोषणा की और अपने प्रथम शिष्य श्री १०८ वीरसागरजी महाराज को आचार्य घोषित किया । चूंकि श्री १०८ वीरसागरजी महाराज इस अवसर पर जयपुर में विराजमान थे, अत: घोषणा पत्र लिखवाकर उनके पास भिजवाया गया । दर्शनार्थियों की संख्या ३ हजार से अधिक थी।
२५ अगस्त - जलाहार के पूर्व आचार्य श्री शुद्धि करते हुए।
२५ अगस्त १९५५ जल ग्रहण किया। दोनों समय दर्शन देकर जनता को कृतार्थ किया । आज दर्शन देने के पश्चात् देहली से पं. शिखरचंद जी (मैनेजर) महासभा, लाला ऋखवदास जी, रामसिंहजी (खेकड़ा वाले) आदि दर्शनार्थ पधारे। श्री पं. सुमेरचंद्रजी दिवाकर न्यायतीर्थ बी.ए., एल.एल.बी., सिवनी, पं. इन्द्रलालजी शास्त्री जयपुर, पं. मक्खनलालजी दिल्ली, भट्टारक जिनसेनजी के प्रवचन हुये।
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