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मुनिराज श्री
वर्धमानसागरजीमहाराज बाहुबली क्षेत्र में दर्शन
इन परमपूज्य साधुराज के दर्शन १५ फरवरी, सन्१९५७ को ८ बजे सुबह बाहुबली क्षेत्र (कुम्भोज ग्राम, जिला कोल्हापुर) में शुक्रवार के दिन हुए थे। उस दिन जिनेन्द्र पंचकल्याणक में जन्मकल्याण का महोत्सव हो रहा था। इनका शरीर सुडौल, गेंहआ वर्णयुक्त था। ज्येष्ठ सुदी दशमी, शक संवत् १७८५, ईसवी सन् १८६३ में इनका जन्म हुआ। ६४ वर्ष की जिनकी अवस्था हो, दिगम्बर शरीर और मन भी जिनका दिगम्बर हो ऐसे साधुराज के दर्शन से बड़ी शांति मिली।
वर्धमान भगवान के शासनकाल में वर्धमान वय वाले सकल संयम की साधना में अत्यन्त वर्धमान, वर्धमान स्वामी के दर्शन से अन्तःकरण का आनन्द भी वर्धमान हुआ।
उनकी स्थिरता, निर्मलता और सर्वाङ्गीण साधुता का परिचय पाकर मन आनन्दित होने के साथ चकित भी होता था। अधिक वृद्ध व्यक्ति से चला नहीं जाता, शरीर अपना-वीभत्स रूप दिखाता है और वह तो अर्धमृतक अर्थात् मृतप्राय-सा लगता है, उस शरीर से श्रावक के सामान्य संयम का अभ्यास भी आज दिन शक्य नहीं होता। मृत्यु के पास पड़ा हुआ वह वृद्ध औषधियों आदि के द्वारा जीता हुआ मृतप्राय प्रतीत होता है, किन्तु ६४ वर्ष की अवस्था में इस हीन काल में असंप्राप्तसपटिकासंहनन वाले शरीर में विद्यमान वर्धमानसागरजी सचमुच में आज के भोगी युग के लिए आश्चर्य की वस्तु थे। उनके मुखमण्डल पर विलक्षण तेज था। अद्भुत शांति से सुसज्जित उनका शरीर, अङ्गप्रत्यंग तथा आत्मा थी। यदि कोई देखता, तो उसे लगता मानो सचमुच में शान्ति के सागर शांतिसागर महाराज के पादपद्यों के पास पहुंच गया है। आचार्य महाराज की स्वर्गयात्रा के पश्चात् गुरुदर्शन न होने से व्यथित मन को इनके पास ऐसा लगा मानो जीवनप्रद सामग्री मिल गई। वार्तालाप ___ मैंने उन्हें प्रणाम किया। वे बोले-“बड़ा अच्छा हुआ आ गये। हमने तो बहुत पहले तुम्हारे आने का समाचार सुना था। बहुत दिन तक प्रतीक्षा भी की, फिर सुनने में आया कि तुम जापान चले गये और अब एकदम तुम हमारे पास आ गये। हमें ऐसा लगता था
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