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चारित्र चक्रवर्ती
वैद्यराज श्री
शान्तिनाथ भुजबली, बारामती
वैद्यराज को उपदेश, "पैसा साथ नहीं जायेगा "
बारामती में श्री शान्तिनाथ भुजबली वैद्य एक सज्जन व्यक्ति हैं । वे महाराज के पास बहुधा आया-जाया करते थे और उनके स्वास्थ्य के विषय में विशेष ध्यान रखा करते थे। वैद्यराज ने बताया कि महाराज हमसे कहते थे- “तुमने हजारों आदमियों को दवा दी है, किंतु उससे अधिक फल निर्ग्रन्थ साधु अथवा व्रती को औषधि देने का है। तुम साधु-सेवा में लगे रहते हो, इसका तुम्हें बहुत मधुर फल मिलेगा। ऐसा ही परोपकार करने में अपने जन्म सार्थक बनाते रहना । "
महाराज के ये शब्द बड़े मार्मिक हैं- “पैसा खूब संग्रह करो, तो भी वह तुम्हारे साथ नहीं जायेगा। धर्म ही साथ जानेवाला है। बीमार स्वयं की प्रसन्नता से जितना दे, उतना लेना । जबर्दस्ती करके और उसे दुःखी करके नहीं लेना चाहिए, इसे अवश्य ध्यान में रखना । " स्वर्गारोहण की रात्रि का वर्णन
आचार्य महाराज का स्वर्गारोहण भादों सुदी दूज को सल्लेखना ग्रहण के ३६ वें दिन प्रभात में ६ बजकर ५० मिनट पर हुआ था ।
उस दिन वैद्यराज महाराज की कुटी में रात्रि भर रहे थे । उन्होंने महाराज के विषय में बताया था कि- “ दो बजे रात को हमने जब महाराज की नाड़ी देखी, तो उसकी गति बिगड़ी हुई अनियमित थी। तीन, चार ठोके देने के बाद रुकती थी, फिर चलती थी । हाथ-पैर ठण्डे हो रहे थे। रुधिर का संचार कम होता जा रहा था। चार बजे सबेरे श्वास कुछ जोर का चलने लगा, तब हमने कहा- "अब सावधानी की जरूरत है । अन्त अत्यन्त समीप है । "
सबेरे ६ बजे महाराज का संस्तर से उठाने का विचार क्षुल्लक सिद्धिसागर (भरमप्पा) ने व्यक्त किया। महाराज ने सिर हिला कर निषेध किया। उस समय तक वे सावधान थे। उस समय श्वास जोर-जोर से चलती थी। बीच में धीरे-धीरे रुककर फिर चलने लगती थी । उस समय महाराज के कान में भट्टारक लक्ष्मीसेनजी 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः ' तथा 'णमोकार मंत्र' सुनाते थे।
६ बजकर ४० मिनट पर मेरे कहने पर महाराज को बैठाया, पद्मासन लगवाया, कारण कि अब देर नहीं थी । अब श्वास मन्द हो गई। ओष्ठ अतिमन्द रूप से हिलते हुए सूचित होते Tata जाप कर रहे हों। एक दीर्घ श्वास आया और हमारा सौभाग्यसूर्य अस्त हो गया।
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