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चारित्र चक्रवर्ती में पहुंचाना, मोक्ष को जाना, यह सब जीव में होता है। पुद्गल मोक्ष में नहीं जाता है। आदेश और उपदेश
इतना समझने पर भी यह सब जग भूल भटक रहा है, पंच पापों में पड़ा हुआ है। दर्शनमोहनीय कर्म के उदय ने सम्यक्त्व का घात किया है, चारित्र-मोहनीय कर्म के उदय ने संयम का घात किया है। इस प्रकार इन दोनों कर्मो ने अनन्त काल से जीव का घात किया है। फिर अपने को क्या करना चाहिए ? सुख प्राप्त करने की जिसको इच्छा हो उस जीव को हमारा आदेश है कि दर्शनमोहनीय कर्म का नाश करके सम्यक्त्व प्राप्त करो। चारित्रमोहनीय कर्म का नाश करो, संयम को धारण करो। इन दो मोहनीय कर्म का नाश कर अपना आत्मकल्याण करो, यह हमारा उपदेश है।
अनन्त काल से यह जीव संसार में परिभ्रमण कर रहा है। किस कारण से ? एक मिथ्यात्व कर्म के उदय से। अपना कल्याण किससे होगा? इस मिथ्यात्व कर्म के नाश से। अत: उसका नाश अवश्य करना चाहिए। सम्यक्त्व प्राप्त करना चाहिए। ___ सम्यक्त्व किसे कहते हैं, इसका कुन्दकुन्दस्वामी ने समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचस्तिकाय, अष्टपाहुड़ में और गोम्मटसारादि बड़े-बड़े ग्रन्थों में वर्णन किया गया है। इस पर कौन श्रद्धा रखता है ? अपना आत्मकल्याण करने वाला रखेगा। जीव संसार में भ्रमण करता आ रहा है। यह हमारा आदेश है, उपदेश है। ॐ सिद्धाय नमः। कर्तव्य
फिर आपको क्या करना चाहिये ? दर्शनमोहनीय कर्म का क्षय करना चाहिये। किससे उसका क्षय होता है ? एक आत्मचिंतन से होता है। कर्म निर्जरा किससे होती है ? आत्मचिंतन से होती है। तीर्थयात्रा करने पर पुण्यबंध होता है। प्रत्येक धर्मकार्य करने पर पुण्यबन्ध होता है। आत्मचिंतन
कर्म निर्जरा होने के लिये आत्मचिंतन साधना है। अनन्त कर्मो की निर्जरा के लिए आत्मचिंतन ही साधन है। आत्मचिंतन किये बिना कर्मो की निर्जरा होती नहीं। केवलज्ञान होता नहीं, केवलज्ञान के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।
फिर अपने को क्या करना चाहिये ? चौबीस घण्टे में छह घड़ी उत्कृष्ट कही गई है। चार घड़ी मध्यम कही गई है, दो घड़ी जघन्य कही गई है। जितना समय मिले उतना समय आत्मचिंतन करो। कम से कम तो १०-१५ मिनट तो करो। हमारा कहना है कि कम से कम पाँच मिनिट तो करें। आत्मचिंतन किये बिना सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होता है। सम्यक्त्व के बिना कर्मो का संसार बंधन टूटता नहीं। जन्म जरा मरण छूटता नहीं।
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