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चारित्र चक्रवर्ती जगत के गुरु
आचार्य महाराज के विषय में वे कहने लगे-“उनकी वाणी में कितनी मिठास, कितना युक्तिवाद और कितनी गम्भीरता थी, यह हम नहीं कह सकते। महाराज, जब
आलंद (निजाम राज्य में) पधारे, तब उनका उपदेश वहाँ मुस्लिम जिलाधीश के समक्ष हुआ। उस उपदेश को सुनकर वह अधिकारी और उनके सहकारी मुस्लिम कर्मचारी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने महाराज को साष्टांग प्रणाम किया और बोले-“महाराज, जैनों के ही गुरु नहीं हैं, ये तो जगत् के गुरु हैं। हमारे भी गुरु हैं।" __ आचार्य महाराज समय को देख सुन्दर ढंग से इस प्रकार तत्त्व बतलाते थे कि शङ्का के लिए स्थान नहीं रहता था। मैंने पूछा-"उस भाषण में महाराज ने क्या कहा था ?" वे बोले-“आचार्य महाराज ने देव, गुरु तथा शास्त्र का स्वरूप समझाया था।"
उन्होंने कहा था-"जो हमारे ध्येय को पूरा करे वही देव है। जितने ध्येय हैं, उतने देव मानने पड़ेंगे और उनकी पूजा करनी पड़ेगी। कुंजड़ी को देव मानना होगा, तब इष्ट साग आदि की पूर्ति होगी। पूजा का स्वरूप लोगों ने समझा नहीं, पूजा का अर्थ योग्य सम्मान है।" पशुओं में ज्ञान शक्ति
उन्होंने बताया-“हम शिखरजी गये थे। रास्ते में १००-१५० बैलों का झुंड मिला। चार मस्त बैल भागे, महाराज की तरफ आये और उनकी तरफ मुँह करके प्रणाम करके रह गये। देखने वालों के नेत्रों में आँसू आ गये। लोग कहने लगे, इन जानवरों को इतना ज्ञान है कि साधुराज को प्रणाम करते हैं और मनुष्यों की इसके विपरीत अवस्था है।" वीरसागर महाराज ने कहा था कि उस परिस्थिति में आचार्य महाराज पूर्ण शान्त थे। दक्षिण के जैनों का उद्धार
वे बोले-“आचार्य महाराज ने दक्षिण के जैनों का बड़ा उपकार किया है। उन्होंने पत्थर को रत्न बनाया है। किसी-किसी जगह जैन लोग बलिदान में सम्मिलित होते थे। आचार्य महाराज ने उस समय यह नियम किया था कि जो जीवहिंसा का त्याग करेगा, मिथ्यात्व का त्याग करेगा और पुनर्विवाह का त्याग करेगा, उसके हाथ का ही आहार लेंगे।" करुणाग्रह
"एक समय की बात है, छिपरी गाँव का पाटील बलिदान संपर्क छोड़ नहीं रहा था। उस समय महाराज ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक यह नियम नहीं करेगा, तब तक मेरे अन्न-जल का त्याग है।" स्मरण रहे कि यह उस समय की बात है, जब गांधीजी के पास सत्याग्रहरूपी हथियार नहीं पहुंचा था। उन्होंने जीव हित के लिए जिस मार्ग को अपनाया था, उसे आज की दुनिया सत्याग्रह कहती है।
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