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आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज
देहली में १०८ आचार्यरत्न देशभूषण महाराज का १६५७ में चातुर्मास था। उसके पूर्ण होने के पश्चात् हम देहली में राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्रप्रसादजी के पास जबलपुर के बृहत् जैन पंचकल्याणक महोत्सव में उनके पधारने की स्वीकृति प्राप्त करने हेतु गए थे । दिसम्बर माह में राष्ट्रपतिजी से भेंट हुई थी। लगभग ५० मिनिट तक उन भद्रस्वभाव वाले महान् सत्पुरुष से चर्चा हुई थी। पश्चात् मैं आचार्य देशभूषण महाराज के पास आया। मैंने प्रार्थना की कि मुझे आचार्य शांतिसागर महाराज के विषय में कुछ महत्त्वपूर्ण संस्मरण सुनाइये ।
उपगूहन तथा स्थितिकरण
देशभूषण महाराज ने कहा था- "स्व. आचार्य महाराज में उपगूहन तथा स्थितिकरण अपूर्व थे। किसी साधु के दोषों की चर्चा चलने पर लोगों के समक्ष वे चुप रहते थे, शांत रहते थे। एकान्त स्थान में वे सदोष साधु को खूब दंड देते थे। लोगों के द्वारा की गई चुगली पर वे विश्वास न करके स्वयं अपनी पैनी दृष्टि डालकर दूसरे की मानसिक अवस्था का अनुमान कर लिया करते थे। उनके आत्म-तेज के कारण अपराधी स्वयं भी अपराध को स्वीकार करता था । "
प्रेमपूर्ण मार्मिक शिक्षा
देशभूषण महाराज ने कहा- “मैं नवदीक्षित और छोटी अवस्था का मुनि था । नांद्रे में मैं आचार्य महाराज के पास गया। मैंने उनकी वंदना की। उन्होंने दयाकर मेरी वंदना को स्वीकार कर प्रतिवंदना की । " उन्होंने मुझ पर अपार प्रेमभाव व्यक्त करते हुए कहा"तुम हमारे भाई हो । सदा आगम के अनुकूल चलना। किसी के बहकावे में मत आना । तुम्हारी उमर छोटी है । सम्हाल कर काम करना। तुम क्षत्रियवंश के हो । घराने को धब्बा लगे, ऐसा काम कभी मत करना। तुम भ्रम उत्पन्न करने वाले बड़े-बड़े भूतों से बचना । धर्म की खूब प्रभावना करना।'
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संयम की चिन्ता
पढ़ाई की बात न पूछकर पहले हमारे संयम का हाल पूछा - " तुमने कितना प्रतिक्रमण
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