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श्रमणों के संस्मरण
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व्रत दान
आचार्य महाराज का जीवन चुम्बक की तरह मन को आकर्षित करता था। एक दिन पं. धन्नालालजी कासलीवाल, बम्बई वाले महाराज के पास गये और बोले-“महाराज मुझे ब्रह्मचर्य प्रतिमा दीजिए।" महाराज ने कहा- "इसके लिए मुहूर्त देखेंगे।"पंडितजी ने विनयपूर्वक कहा-“महाराज, आज मैंने आपके चरण पकड़ लिए। मेरे लिए, इससे बढ़कर क्या मुहूर्त होगा?"पंडित जी की तीव्र लालसा देखकर उन्हें उसी समय ब्रह्मचर्य प्रतिमा दी गई। दो माह के पश्चात् पण्डित धन्नालालजी का स्वर्गवास हो गया। व्रतयुक्त उनकी मृत्यु हुई। इस प्रकार महाराज ने बहुत-से व्यक्तियों का कल्याण किया। आचार्य महाराज के शरीर पर लिपटा सर्प
वीरसागर महाराज ने कहा-“आचार्य महाराज के शरीर पर सर्प लिपटा था, किन्तु उसने कुछ उपद्रव नहीं किया। इसका कारण भी उन्होंने बताया-“अंतरङ्ग में निर्मलता हो तो बाहर वालों में भी निर्मलता आ ही जाती है, इसीलिए वह सर्प अभिभूत हुआथा।" मुनिजीवन में क्या कष्ट है ?
मैंने कहा-“महाराज आचार्यश्री ने आपको मुनि बनाकर, आपको कष्ट दिया या आनन्द दिया ?" उत्तर देते हुए वीरसागर महाराज बोले- "हमें कौन-सी बात का कष्ट है ? हम तो तुम्हारी तकलीफ देखते हैं और उसे छुड़ाना चाहते हैं। तुम परिग्रह और आकुलता के जाल में जकड़े हुए हो। तुम्हें क्षण भर भी शान्ति नहीं है।" ___ "देखो! साधु के परीषह होती है, गृहस्थ भी कम परीषह सहन नहीं करता। जितना कष्ट गृहस्थ उठाता है तथा जितना परिग्रह का ध्यान वह करता है, उतना कष्ट यदि मुनि सहन करे
और निज गुण का ध्यान करे, तो उसे मोक्ष प्राप्त करने में देर न लगे। देखो ! चिल्हर का व्यापार करने वाला बीच बाजार में बैठता है। हर एक ग्राहक को देता है, लेता है, परन्तु अपने धन कमाने के ध्येय को नहीं भूलता है। कितनी सावधानी रखता है वह ?" साधु जीवन व गृहस्थ जीवन में सिर्फदृष्टि का फेर है
“दूसरी बात, गृहस्थ जेठ महीने में दस बजे दुकान पर जाता है। सूर्य की गर्मी बढ़ती जाती है। ग्राहकों की भीड़ लगी हुई है। उस समय नौकर आकर कहता है, पानी पी लो, तो वह सुनता नहीं, बहिरा बन जाता है। पुनः कहता है, तो वह डाँट देता है या उसकी
ओर ध्यान नहीं देता है। ध्यान है ग्राहक पर। इस प्रकार वह अपने लाभ की ओर चित्त लगाए हुए रहता है और कष्ट की ओर उसका ध्यान नहीं जाता। यह दृष्टि का फेर है। आत्मकल्याण में लगने पर साधु आरम्भ क्रियाओं को छोड़ देता है और आत्मकल्याण के कार्यों में आगत विघ्नों को सहज ही सहन करता है।"
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