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आचार्य श्री
पायसागरजीमहाराज कोल्हापुर से हम १०८ आचार्य पायसागर महाराज का दर्शन करने स्तवनिधि गए। पायसागर महाराज से हमने आचार्य महाराज के विषय में कुछ बातें बताने की प्रार्थना की। आचार्य महाराज की विशेषता
श्री पायसागर महाराज ने कहा-“आचार्य महाराज की मुझ पर अनंत कृपा रही। उनके आत्म-प्रेम ने हमारा उद्धार कर दिया। महाराज की विशेषता थी कि वे दूसरे ज्ञानी तथा तपस्वी के योग्य सम्मान का ध्यान रखते थे। एक बार में महाराज के दर्शनार्थ दहीगांव के निकट पहुँचा। मैंने भक्ति तथा विनयपूर्वक उनको प्रणाम किया। महाराज ने प्रतिवंदना की।" मैंने कहा-“महाराज मैं प्रतिवंदना के योग्य नहीं हूँ।"
महाराज बोले-“पायसागर चुप रहो। तुम्हें अयोग्य कौन कहता है ? मैं तुम्हारे हृदय को जानता हूँ।" महाराज के अपार प्रेम के कारण मेरा हृदय शल्यरहित हो गया। मेरे गुरु का मुझ पर अपार विश्वास था। असली प्रायश्चित्त
मैंने कहा-“बहुत वर्षों से गुरुदेव आपका दर्शन नहीं मिला । मैं आपके चरणों में आत्मशुद्धि के लिए आया हूँ। मैं अपने को दोषी मानता हूँ। मैं अज्ञानी हूँ। गुरुदेव, आपसे प्रायश्चित्त की प्रार्थना करता हूँ।"
महाराज ने कहा- “पायसागर! चुप रहो। हमें सब मालूम है। तुमको प्रायश्चित्त देने की जरूरत नहीं है। आज का समाज विपरीत है। तू अज्ञानी नहीं है। तुझे अयोग्य कौन कहता है। मैं तेरे को कोई प्रायश्चित्त नहीं देता हूँ। प्रायश्चित्त को नहीं भूलना, यही प्रायश्चित्त है।" आचार्यश्री की चेतावनी
जब आचार्य महाराज से अंतिम विदाई होने लगी, तब महाराज ने कहा-“पायसागर! बहुत होशयारी से चलना। स्व-स्वरूप में जागृत रहना।" .
उन्होंने यह भी कहा था-“दुनिया कुछ भी कहती रहे, तू तो योग-निद्रा में लीन रहना।" जीवन-सुधार का अपूर्व उदाहरण
पायसागरजी के एक निकट स्नेही सज्जन ने बताया कि पहले ये ही महाशय जिनधर्म
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