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श्रमणों के संस्मरण
४६७ थे। इस प्रकार मेरी और वीरसागर की समडोली में एक साथ मुनि दीक्षा हुई थी। वहाँ चन्द्रसागर ऐलक बने थे।" घर की बातें __इनके पिता का नाम अण्णा था। घर में नेमिसागरजी को नेमण्णा कहते थे। नेमिसागर महाराज के एक भाई की पैदा होते ही मृत्यु हुई थी व दूसरे भाई की मृत्यु सात-आठ वर्ष की अवस्था में हुई थी। नेमण्णा ज्येष्ठ थे। माता की मृत्यु के समय इनकी अवस्था लगभग बारह वर्ष की थी। माता की धर्म-रुचि बहुत थी। माता सरल परिणामी, परोपकार रत व साधु स्वभाव वाली थी। दीनजनों पर माता का बड़ा प्रेम था।
इनके पिता अण्णाजी बहुत बलवान थे। पाँच-छ: गुंडी पानी से भरा हंडा पीठ पर रखकर लाते थे।
नेमिसागर महाराज की मुनिपद धारण की रुचि बाल्यकाल से ही थी। उन्होंने बताया, "हमारी १५ वर्ष की अवस्था में ही मुनि बनने की इच्छा थी। हम ज्योतिषी से पूछते थे कि हमारी इच्छा पूर्ण होगी या नहीं ?" नेमिसागर नाम का हेतु
इनकी माता का नाम शिवदेवी है ऐसा जानकर मैंने कहा-“महाराज भगवान् नेमिनाथ तीर्थङ्कर की माता का नाम शिवदेवी था। आपकी माता का भी यह नाम था। यही समता महत्वपूर्ण है।"
इस पर नेमिसागर महाराज ने कहा-“मेरा नाम नेमण्णा था। गोकाक के मंदिर में हमारी ऐलक दीक्षा का संस्कार हुआ था। वहाँ मूलनायक नेमिनाथ भगवान् थे। इस कारण आचार्य महाराज ने हमारा नाम नेमिसागर रखा था।" इस प्रकार नेमिनाथ भगवान् के सान्निध्य में शिवदेवी के पुत्र नेमण्णा को ऐलक दीक्षा देते समय नेमिसागर नाम रखना आचार्य महाराज की विशिष्ट दृष्टि को सूचित करता है। ऐलक दीक्षा का रहस्य
नेमिसागर महाराज ने कहा- “मैंने आचार्य महाराज से मुनिदीक्षा मांगी थी, किन्तु उन्होंने कहा, थोड़े दिन ऐलक बनो। कुछ समय बाद मुनिदीक्षा देंगे।"वे यह भी कहते थे"हमारा क्या जाता है, दीक्षा लेना है, तो ले लो।"ऐलक दीक्षा देने का उनका अभिप्राय था कि मुनिपद का पूर्व अभ्यास हो जाय। स्वयं मुनि बनने के पूर्व महाराज क्षुल्लक रह चुके थे। __ स्व. वर्धमानसागर महाराज को मुनि बनाने के पूर्व उन्होंने ऐलक दीक्षा दी थी। उसके पहले वे क्षुल्लक रह चुके थे। आजकल कोई-कोई साधु पूर्व जीवन का निरीक्षण किए बिना सहसा मुनिदीक्षा दे देते हैं। उसका परिणाम शिथिलाचार की वृद्धि रूप में देखने में
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